सुधा चंद्रन जी की जीवनी (SUDHA CHANDRAN BIOGRAPHY IN HINDI) !
सुधा चंद्रन के जीवन के संघर्ष और कामयाबी की कहानी !
यदि
भगवान हमारे जीवन में हमसे कुछ छीनता है तो उसके बदले हमें कुछ देता भी है, और यहीं कमजोरी जब हमारी ताकत बन जाती है तब सारी दुनिया
हमें पहचानती है। यह बात भारतीय फिल्म और टेलीविज़न की प्रसिद्व अभिनेत्री सुधा
चंद्रन के जीवन पर एक दम सही साबित होती है, और सभी लोगों को सीख देती है कि जीवन में कभी भी हार नहीं
माननी चाहिए। सुधा चंद्रन जी का छोटी उम्र में एक हादसे के कारण अपना एक पैर गवाना
पड़ा। फिर भी उन्होंने अपने जीवन में हार नहीं मानी। बल्कि एक नकली पैर लगाकर अपने दृढ़संकल्प
और आत्मविश्वास के साथ कड़ी मेहनत करके पेशेवर भरतनाट्यम नृत्यांगना बनी और इसके
साथ सफल अभिनेत्री बनकर अपने अभिनय से लोगों के बीच में अपनी विशेष जगह बनाई। उनकी
प्रसिद्व फिल्म मयूरी के लिए उन्हें भारतीय राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी
सम्मानित किया गया और टेलीविज़न के कई सीरियल जैसे नागिन, नागिन 2, क्योंकि
सास भी कभी बहु थी, यह है
मोहब्बत,
बेपनाह प्यार आदि में उनके किरदार को दर्शकों ने काफी पसंद
किया। आज के ब्लॉग में हम सुधा चंद्रन जी के जीवन की संपूर्ण जानकारी पढ़ेंगे।
सुधा चंद्रन जी की जीवनी (SUDHA
CHANDRAN BIOGRAPHY IN HINDI) !
सुधा
चंद्रन जी का जन्म 27 सितम्बर 1965 को मुंबई में एक मध्यवर्गीय तमिल परिवार में हुआ। उनके
पिता का नाम केडी चंद्रन है, जो
एक दिग्गज एक्टर थे. और उनकी मां का नाम थांगम है। सुधा चंद्रन जी का पालन - पोषण
मुंबई में हुआ। उन्होंने MA स्नातक
मीठीबाई कॉलेज मुंबई से करी । सुधा चंद्रन जी को बहुत कम आयु से ही नृत्य कला और
अभिनय में रुचि थी. उन्होंने मात्र 3 वर्ष की आयु से भारतीय शास्त्रीय नृत्य सीखना आरंभ कर दिया
था. इतनी छोटी उम्र में नृत्य और कला से प्यार बहुत ही कम बच्चों में होता है। वह
मात्र 5 वर्ष की आयु तक एक निपुण नृत्यांगना बन कर मंच पर प्रदर्शन
करने लगी और 16 वर्ष की आयु तक आते
-आते सुधा जी ने देश विदेश में प्रदर्शन करके कई पुरस्कार अपने नाम किये।
जब सफलता उनके कदम चूम रही थी. तभी उनकी जिन्दगी में एक हादसा हो जाता है। एक दिन वह अपने माता-पिता के साथ तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थित मंदिर में पूजा करने गई थी. मंदिर से लोटते वक़्त उनकी बस का एक ट्रक से भीषण एक्सीडेंट हो जाता है, जिसमें कई लोग गंभीर रुप से घायल हो जाते है। इस भीषण एक्सीडेंट में सुधा जी के पैर की हड्डी टूट जाती है, उन्हें हॉस्पिटल लेजाया जाता है, जहां पर उनके टूटे हुए पैर पर पट्टी कर दी जाती है। कुछ दिनों के पश्चात उनके टूटे पैर में टिश्यूज नष्ट होने लगते है और उनके पांव में घाव बन जाता है तब उनके माता पिता उन्हें पुनः डॉक्टर के पास ले जाते है. डॉक्टर जांच करने के बाद सुधा जी के माता पिता को बताते है कि उनके पैर में गैंग्रीन नामक संक्रमण हो गया है, जो इनकी पूरे शरीर में फैल सकता है और इनकी मृत्यु भी हो सकती है सुधा जी की जान बचाने के लिए संक्रमण वाले पैर को काटना पड़ेगा। यह बात सुनकर उनके माता पिता दुःखी मन से पैर काटने की इजाजत डॉक्टर को दे देते है।
सुधा
जी जो नृत्य की धनी थी. इस हादसे के
बाद सुधा जी चलने -फिरने में असमर्थ हो गई. जिसके कारण उनका भरतनाट्यम की मशहूर
नृत्यांगना बनने का सपना चूर - चूर हो गया। उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे सब कुछ खत्म
हो गया है। सुधा जी की अपंगता के बारे में कोई भी जब उनसे और उनके माता पिता से सवाल
करता तो उनका मन दुःखी हो जाता क्योंकि लोग उन्हें दया और रहम की नज़र से देखते थे.
एक समय ऐसा भी आ गया था जब उनके परिवार को अपनी सुख-सुविधाओं की चीजे लेने के लिए
रात के अंधरे में निकलना पड़ता था।
फिर
सुधा जी ने सोचा कि मैं इस तरह से अपनी जिंदगी व्यतीत नहीं कर सकती। इसके बाद वह
प्रण लेती है कि मुझे फिर से अपने पैरो में खड़ा होकर अपने सपने पूरे करने है और
माता पिता का नाम गर्व से ऊंचा करना है. इसके साथ लोगों को दिखाना है कि एक
विकलांग भी किसी स्वस्थ व्यक्ति से कम नहीं है।
सुधा
जी का जब हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। तब अख़बार पढ़ते हुए उनकी नजर एक विज्ञापन पर
पड़ी,
जिसमें चमत्कारपूर्ण पैर के विषय में लिखा था। यह विज्ञापन
डॉ. प्रमोद करण सेठी के द्वारा भारत में कृतिम पैर बनाने के बारे में था. जिसमें लिखा
था, कम कीमत पर फ्लेक्सिबल, वाटरप्रूफ कृतिम पैर लगाया जाता है। डॉ. सेठी कृतिम पैर
बनाने के कार्य में एक जाना माना नाम था। इस कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी
मिले थे।
इस
विज्ञापन को देखकर सुधा जी के मन में टूटे हुए सपने को पूरा करने की आस जगी। फिर सुधा
जी ने डॉ. सेठी से संपर्क किया कि वह उनसे मिलना चाहती है, डॉ. सेठी सुधा जी से मिलने को राजी हो जाते है।
सुधा
जी की जिस दिन डॉ. सेठी से पहली मुलाकात थी. उन्होंने सबसे पहले उनसे पूछा की सर में जयपुर फुट से पहले की तरह अपने
दोनों पैरो से चल सकूंगी, मैं
एक्सीडेंट से पहले एक भारतीय सांस्कृतिक नर्तकी थी, क्या जयपुर फुट लगाने से में पहले की तरह नृत्य कर सकूंगी।
इन सवालों का जवाब डॉ. सेठी सुधा जी का होंसला बढ़ाते हुए कहते है, यह सब तुम पर निर्भर करता है कि तुम अपने नृत्य के प्रति
कितनी इच्छा - शक्ति से मेहनत करती हो, तुम दुबारा से नृत्य कर सकती हो बस तुम्हें अपनी अंतरात्मा
को जगाना होगा। डॉ. सेठी की बातों से सुधा जी के जीवन पर काफी प्रभाव आया और
उन्होंने डॉ. सेठी से कहकर अपने नृत्य की जरूरत
के हिसाब से एक जयपुर फुट बनाने को कहा, फिर डॉ. सेठी ने उनकी जरूरतों को पूरा करने वाले जयपुर फुट
बनाकर उनके कटे हुए पांव से जोड़ दिया।
अब
सुधा जी की बारी थी उन्हें अपने टूटे हुए सपने पूरे करने थे। उन्होंने दुबारा से
नृत्य करना शुरू किया, लेकिन उनकी
शुरुआत काफी पीड़ादायक रहीं, नृत्य करते
समय उनके पांव में काफी पीड़ा होने लगी और कभी -कभी रक्त का भी रिसाव होने लगा।
लेकिन सुधा जी ने हार नहीं मानी, वह
अपने नृत्य का निरंतर अभ्यास करती रहीं।
सुधा
जी ने अपने नृत्य के खातिर काफी कठिन परिश्रम किया, जिसका फल उनको मिला, वह पहले की तरह एक निपुण नृत्यांगना बन चुकी थी, बस उनको एक मंच की आवश्यकता थीं जिसमें वह लोगों को अपने
नृत्य का जोहर दिखा सके।
फिर
सुधा जी को 2 वर्ष के बाद अपने नृत्य का जोहर दिखाने का मौका मिलता है, उन्हें एक कॉलेज के कार्यक्रम में अपने नृत्य का प्रदर्शन
करने का आमंत्रण मिलता है. सुधा जी कई वर्षों के बाद मंच पर प्रदर्शन कर रही थीं , वो भी कृतिम पैर के साथ वह थोड़ी घबराई हुई थी, लेकिन मंच पर उतरते ही उनके अंदर एक अलग ही जोश आ गया. उन्होंने
भरतनाट्यम का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया, कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए। जब दर्शकों को पता चला कि वह
विकलांग है, तब सुधा जी के सम्मान
में दर्शकों ने खड़े होकर तालियां बजाई। सुधा जी के बुलंद हौसले और नृत्य के प्रति
दीवानगी से सभी लोग कायल हो गए। उसके बाद वह धीरे -धीरे करके लोकप्रिय भरतनाट्यम
नृत्यांगना के रुप में मशहूर होने लगी।
उसके
बाद सुधा जी ने साल 1984 में मयूरी नाम की
तेलुगु फिल्म में काम किया, जो उनके
जीवन पर आधारित थी। मयूरी फिल्म का हिंदी रीमेक साल 1986 में बनाया गया, जिसका नाम नाचे मयूरी रखा गया। इस फिल्म
में भी अभिनय सुधा जी ने ही किया था। मयूरी फिल्म में उनके अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय
फिल्म पुरस्कार की विशेष जूरी अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इसके बाद उन्होंने
कई फिल्मों और टेलीविज़न के कई सीरियल में अभिनय किया। वह वर्तमान समय में भी कई
सीरियल में अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन कर रहीं है।
सुधा
चंद्रन जी की जीवनी से हम सब को सीख मिलती है कि कैसे उन्होंने अपने जीवन में अपनी कला के
आगे अपंगता को आने नहीं दिया। सुधा जी ने अपने टूटे हुए सपनों को कड़ी मेहनत और लगन से प्राप्त करके सभी लोगों के लिए एक मिसाल बनी।
सुधा चंद्रन जीवनी संक्षिप्त
में (
पूरा नाम(Full Name) |
सुधा चंद्रन |
जन्म दिनांक(Birth Date) |
27 सितम्बर,1965
|
उम्र(Age) |
(56
वर्ष) |
जन्म स्थान(Birth Place) |
मुंबई महाराष्ट्र |
गृहनगर(Home Town) |
मुंबई महाराष्ट्र |
वर्तमान शहर(Current City) |
मुंबई महाराष्ट्र |
वैवाहिक स्थिति(Marital Status) |
शादीशुदा |
पिता(Father) |
स्वर्गीय,
केडी चंद्रन |
माता(Mother) |
थांगम |
पति(Husband) |
रवि दंग |
पेशा(Profession) |
अभिनेत्री,
नृत्यांगना |
कॉलेज(College) |
मीठीबाई कॉलेज,
मुंबई |
शैक्षिक योग्यता(Qualification) |
एम ए |
धर्म(Religion) |
हिन्दू |
राष्ट्रियता(Nationality) |
भारतीय |
प्रसिद्ध किरदार सीरियल (Famous Characters Serial) |
रमोला सिकंद (कहीं किसी रोज़) यामिनी सिंह रहेजा (नागिन) |
प्रसिद्ध किरदार फिल्म (Famous Characters Movie) |
मयूरी (नाचे मयूरी) ठकुराइन (मालामाल वीकली) |
पहली फिल्म (first Movie) |
मयूरी (तेलुगु) (1984) |
पहला सीरियल(First Serial) |
धर्म युद्ध (1988) |
पुरस्कार(Award) |
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विशेष जूरी (मयूरी) नंदी स्पेशल जूरी पुरस्कार (मयूरी) इंडियन टेलीविज़न अकादमी पुरस्कार बेस्ट एक्ट्रेस नेगेटिव रोल
(तुम्हारी दिशा) गोल्डन पेटल पुरस्कार कॉमिक रोल (नागिन 2) |
कद(Height) |
5.7” |
वजन(Weight) |
70
किलो |
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